तिथि: कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बुधवार, संवत्सर सिद्धार्थी, विक्रम संवत् २०८२
सुख-शान्ति इसमें नहीं कि व्यक्तिवादी सोच रखते हुए आप कितनों से मार्ग में पृथक हो लिए, बल्कि वास्तविक संतोष तब प्राप्त होता है जब आप समावेशी दृष्टिकोण रखते हुए उन सभी के जीवन में कुछ सार्थकता एवम् पुष्टता प्रदान कर सके जो जितने भी दिन आपसे सानिध्य रख सका।
स्मरण रहे जीवन के अंतिम क्षणों तक आप जितनो को जोड़ कर साथ ले चलेंगे उतना ही आप शक्ति व सामर्थ्य युक्त और संतुष्ट हो मुक्ति को अंगीकार करेंगे।
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