रोष व्यक्त करूँगा,क्रोध व्यक्त करूँगा
निष्कामकर्म करके मैं दोषमुक्त रहूँगा
मतभेद तो रहेंगे,फिर भी संग रहूँगा
छल-कपट कभी न करके मैं प्रेममग्न रहूँगा
साथी है सबहिं अपने ,कोई भेद न करूँगा
विषयमुक्त होकर,सबमें बसा रहूँगा
कदम तो मिला लो,ज़रा हाथ मेरा थामों
निकला हूं मैं अकेला,ज़रा कारवां बना दो
भेदभाव सब भुलाकर,अपना मुझे बना लो
मजबूत मैं रहूँगा,अखंड मैं रहूँगा
देवत्व का प्रतीक वह भारत बना रहूँगा।
जय हिंद।
रचनाकर्ता- अभिनव शुक्ल
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